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हम कि हीरो नहीं / जावेद अनवर

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हम ख़िज़ां की ग़दूद से चलकर
ख़ुद दिसम्बर की कोख़ तक आए
हमको फ़ुटपाथ पर हयात मिली
हम पतँगों पे लेट कर रोए

सूरजों ने हमारे होंटों पर
अपने होंटों का शहद टपकाया
और हमारी शिकम तसल्ली को
जून की छातियों में दूध आया
बर्फ़ बिस्तर बनी हमारे लिए
और दोज़ख़ के सुर्ख़ रेशम से
हमने अपने लिए लिहाफ़ बुने

ज़र्द शरयान को धुएँ से भरा
फेफड़ों पर स्याह राख़ मली
नागासाकी में फूल काशत किए
नज़म बेरूत में मुकम्मल की
लोरका को कलाई पर बाँधा
हो ची मिन को नयाम में रखा
साढे़ लेनिन बजे स्कूल गए
सुबह ईसा को शाम में रखा
अर्मुग़ाँ-ए-हिजाज़ में सोए
हौलीवुड की अज़ान पर जागे
डायरी में सिद्धार्था लिखा
दर्द को फ़लसफ़े की लोरी दी
ज़ख़म पर शायरी का फाहा रखा
तन मशीनों की थाप पर थिरके
दिल किताबों की ताल पर नाचा

हमने फ़िरऔन का क़सीदा लिखा
हमने कूफ़े में मरसिए बेचे
हमने बोसों का कारोबार किया
हमने आँखों के आईने बेचे
ज़िन्दगी की लगन नहीं हमको
ज़िन्दगी की हमें थकन भी नहीं
हम कि हीरो नहीं, विलेन भी नहीं