भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम को तन्हाई ये जगातीं है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
					
										
					
					हम को तनहाई ये जगातीं है 
रात भर नींद  नहीं  आती है 
रात बस करवटें बदल बीते
याद  तेरी  हमें   रुलाती  है 
आँसुओं की बरात  आँखों मे
बिन बुलाये ही चली आती है 
हर सुबह  जार जार है रोती
रात भर शम्मा मुस्कुराती है 
कुछ  लकीरें  हैं  बन्द  मुट्ठी  में
जिस को तकदीर खोल जाती है 
प्यार सब को है लुभाये रखता
जिंदगी  वरना  किसे  भाती  है 
अब है लहरों  के  हवाले कश्ती
देखना  है  ये  किधर  जाती  है
	
	