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हम को लड़वा दिया फिर कर्फ़्यू लगाने को चले / पुरुषोत्तम 'यक़ीन'
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हम को लड़वा दिया फ़िर कर्फ़्यू लगाने को चले
इस तरह अम्नो-अमां शहर में लाने को चले
रात को क़त्ल जिन्होंने था किया हँस-हँस कर
सुबह मैयत पे वही आँसू बहाने को चले
दिल में ग़ैरों से गिला रखना हिमाक़त होगी
आँख के तारे ही जब आँख दिखाने को चले
उस ने दरिया पे नहाने को उतारे कपड़े
लोग कहने लगे लो जिस्म दिखाने को चले
भैसें मदमस्त हुईं, बीन बजाने को मिली
साँप इन को भी लो सुर-ताल सधाने को चले
जी भरा मुझ से तो वो उस के गले जा लिपटे
मुझ से ऊबे तो 'यक़ीन' और ठिकाने को चले