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हम क्या हैं / आत्म-रति तेरे लिये / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

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हम क्या हैं, क्या नहीं हैं तुम्हारी निगाह में!
जो भी हैं, हम ही हम हैं मुहब्बत की राह में!

अए राहे बेख़ुदी! हमें पहुँचा दिया कहाँ,
ताउम्र रहेंगे जुनू की पनाह में!

जीते-जी मर गए हैं यकीं हो गया हमें,
लगता नहीं है दिल ये किसी भी गुनाह में!

कोई ग़ज़ल पढ़ो, कि कोई गीत छेड़ दो,
दुःख-दर्द की ये रात कटे वाह-वाह में!

‘सिन्दूर’ कोई खास कहानी न हमारी,
तनहाइयों की रात मिली है निकाह में!