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हम ग़जल अपने लिए कम ही लिखे / डी.एम.मिश्र

 हम ग़जल अपने लिए कम ही लिखे
 ग़म से यारी हो गयी ग़म ही लिखे।

 ये किसी शायर की मजबूरी नहीं
 खौलते अश्क़ों को वो नम ही लिखे।

 वेा बड़े शायर थे शहरों में रमे
 गॉव के दुख-दर्द तो हम ही लिखे।

 गॉव में होता कहाँ चन्दन का पेड़
 हम तो पीपल , नीम, शीशम ही लिखे।

 रोशनी मिलती जिसे खै़रात में
 वो अमावस को भी पूनम ही लिखे।