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हम चलते हैं फिर खेतों में / केदारनाथ अग्रवाल
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हल चलते हैं फिर खेतों में
फटती है फिर काली मिट्टी
बोते हैं फिर बिया किसान
कल के जीवन के वरदान;
फिर उपजेगा उन्नत-मस्तक सिंह अयाली नाज
फिर गरजेगी कष्ट-बिदारक धरती की आवाज़ ।