हम चाहत चातुर चंद तुम्हें तुमको हमरी कुछ चाह नहीं।
कहुँ परे अधूरे दिखाते कभी छिपते हो दुरंत इकंत कहीं॥
करि आदर बादर सीस चढ़ें अलि मंडल मोद रचें मनहीं।
तुम सीतल हो हम आग चुगे कठिनाई पड़े प्रिय जाऊँ नहीं॥
हम चाहत चातुर चंद तुम्हें तुमको हमरी कुछ चाह नहीं।
कहुँ परे अधूरे दिखाते कभी छिपते हो दुरंत इकंत कहीं॥
करि आदर बादर सीस चढ़ें अलि मंडल मोद रचें मनहीं।
तुम सीतल हो हम आग चुगे कठिनाई पड़े प्रिय जाऊँ नहीं॥