भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम चाहैं तुम्हैं सो भले ही कहैं / रमादेवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम चाहैं तुम्हैं सो भले ही कहैं हम पै तुम्हरो इतबार नहीं।
तुम आग से खेलत हो दिल पै हमरे कहीं दाग़ दरार नहीं॥
हम होत निसा नित आवत है तुम्हरे मिलने को करार नहीं।
सच प्रेम को पंथ कराल बड़ा सुनो, खाना कहीं तुम हार नहीं॥