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हम जमीं पर थे खड़े पर आसमाँ होते रहे / रंजना वर्मा
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					हम जमीं पर थे खड़े पर आसमाँ होते रहे 
ढूंढने  खुद को  चले  तो  बेनिशाँ  होते रहे 
एक ही माँ के जने हम एक मिट्टी से बने
फ़ासले लेकिन हमारे दरमियाँ होते रहे 
है हवायें नफरतों की दहशतों की धूल भी
ख़ाक सारे ख़्वाब वाले आशियाँ होते रहे 
जिंदगी बर्बाद कर दी हमने जिसके वास्ते
वो   हमेशा  दूसरों  पर  मेहरबां  होते  रहे 
फिर खिलेंगें फूल गुलशन में अमन ईमान के
आस में  जिस की  हमेशा हम जवां होते  रहे 
आपकी ही आरजू की आपकी ही जुस्तजू
आप ही हम से मगर  यूँ  बदगुमां  होते रहे 
नक्शे पा जिस शख़्स के थे रास्ता दिखला रहे
रास्ते  से  आज  उस के  गुम  निशां  होते रहे
	
	