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हम ज़बाँ खोलते खोलते रह गये / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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हम जबाँ खोलते खोलते रह गये।
वो भी कुछ सोचते-सोचते रह गये।
तोड़कर सारे रिश्ते गये वह मगर,
हम ये दिल जोड़ते-जोड़ते रह गये।
हमने बढ़ती नदी पार की तैरकर,
वो मदद खोजते-खोजते रह गये।
जाने क्या याद आया उन्हें देखकर,
हम क़सम तोड़ते-तोड़ते रह गये।
आज कह देंगे दिल खोल हर बात हम,
जिसको वह पूछते-पूछते रह गये।
बज़्म में सज के वह सामने आये जब,
हम उन्हें देखते-देखते रह गये।
ख्वाब में उनकी ‘विश्वास’ तस्वीर हम,
रात कल चूमते-चूमते रह गये।