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हम ज़ात से हम कलामी और फ़िराक / सईद अहमद
Kavita Kosh से
सच्चे ख़्वाब और झूठी आँखें
अंधे रस्तों की हमराही
अंजान तहय्युर का पानी
और इस्तिफ़्हामी लहजों की
दो-धारी तलवारें
तेरी क़ुर्ब-सराए से
ये ज़ाद-ए-सफ़र साथ लिया है
रूख़्सत के रूख़्सारों पर
आँसू बन कर गिरते
लम्हे के हाथों में
अपने होने का आईना दे
मैं उस काँच बदन से
बे-नाम अंदेशों का
ज़ंगार खुरच डालूँ
और उजले पानी में देख सकूँ
हिज्र-नगर के तपते सूरज के नीचे
उम्र सफ़र का सहरा कितने कोस पड़ा है