भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम जीना चाहते हैं / ब्रजमोहन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम जीना चाहते हैं / हम गाना चाहते हैं
खोया है हमने जो कुछ / अब पाना चाहते हैं
हम जीना चाहते हैं

ये कैसी ज़िन्दगी है
लाचार और बेबस
न कल न आज अपना
न कल पे था कोई बस

आँसू की आग पीना
हम जीना चाहते हैं ...

भाड़ा - किराया, रोटी
झुकती हुई कमर है
बच्चों का घर है सर पे
जीवन ही एक डर है

हिम्मत हुई पसीना
हम जीना चाहते हैं ...

क्या मौत के लिए ही
जीते हैं मन के सपने
सपने हैं गर हमारे
होते नहीं क्यों अपने

जलता है अब तो सीना
हम जीना चाहते हैं ...

हम चाहते हैं जीएँ
इनसानी हैसियत से
अपनी हँसी-ख़ुशी से
और अपनी कैफ़ियत से

ज़ालिम तू हो कहीं न
हम जीना चाहते हैं ...