भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम जो सड़े हुए आयामों को / हरीश भादानी
Kavita Kosh से
हम जो
सड़े हुए आयामों को
गहरी खाई में गाड़
गज़ार बनाने को आतुर हैं,
उन-हम सब पर
पहरेदार-समय का
पहरा लगा रहा है, कि-
हमलोंगों की साँस-साँस में
कड़वाहट घुल जाये,
हम भारी पांव चलें, बहकें,
कुछ दूर चलें, गिर जायें,
लेकिन हम-जो
नंगे बदन
कुदाल-कढ़ाई लिये खड़े हैं,
आओ, पहरेदार समय की
हमलोगों से
अनमेली पोशाक छीन लें
साथ हमारे
चलने की तहज़ीव सिखादें !