हम तुम्हें मरने न देंगे / गोपालदास "नीरज"
धूल कितने रंग बदले डोर और पतंग बदले
जब तलक जिंदा कलम है हम तुम्हें मरने न देंगे
खो दिया हमने तुम्हें तो पास अपने क्या रहेगा
कौन फिर बारूद से सन्देश चन्दन का कहेगा
मृत्यु तो नूतन जनम है हम तुम्हें मरने न देंगे।
तुम गए जब से न सोई एक पल गंगा तुम्हारी
बाग में निकली न फिर हस्ते गुलाबों की सवारी
हर किसी की आँख नम है हम तुम्हें मरने न देंगे
तुम बताते थे कि अमृत से बड़ा है हर पसीना
आँसुओं से ज्यादा कीमती है न कोई नगीना
याद हरदम वह कसम है हम तुम्हें मरने न देंगे
तुम नहीं थे व्यक्ति तुम आजादियों के कारवाँ थे
अमन के तुम रहनुमा थे प्यार के तुम पासवाँ थे
यह हकीकत है न भ्रम है हम तुम्हें मरने न देंगे
तुम लड़कपन के लड़कपन तुम जवानो की जवानी
सिर्फ दिल्ली ही न हर दिल था तुम्हारी राजधानी
प्यार वह अब भी न कम है हम तुम्हें मरने न देंगे
बोलते थे तुम न तुममें बोलता था देश सारा
बस नहीं इतिहास ही तुमने हवाओं को सवाँरा
आज फिर धरती नरम है हम तुम्हें मरने न देंगे