भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम तुम / चंद ताज़ा गुलाब तेरे नाम / शेरजंग गर्ग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुनिया चलती है अपने रस्तों पर और खामोश से खड़े हम तुम देखते एक दूसरे की तरफ़ मानो मुद्दत से हों युँ ही गुम सुम। </poem>