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हम तुम / श्वेता राय
Kavita Kosh से
प्रिय चाँद बनो तुम रजनी के, मैं फूल बनी मुस्काऊँगी।
तुम रूप अनेक धरे हँसना,मैं प्रीत गंध बिखराऊँगी॥
तुम बाँह धरे हो प्रिय जबसे, उर उपवन सा महके मेरा।
हिय धड़कन में है ताल नई, अब अंग अंग दहके मेरा॥
तुम भँवरा बन गुंजन करना, मैं तितली बन इतराऊँगी।
तुम रूप अनेक धरे...
तुमसे उजियाली भोर हुई, तुमसे है संझा मतवाली।
तुमसे भावों को रंग मिले,तुमसे जगमग जीवन पाली॥
तुम सागर से लहराना प्रिय, मैं नौका बन बलखाऊँगी।
तुम रूप अनेक धरे हँसना...
जग की सुंदरता है तुमसे, तुमसे ही जग है सब मेरा।
जीना है अब तो साथ मुझे, दृग द्वार बसेरा अब तेरा॥
तुम पंचम सुर का राग लिये,मैं सरगम बन सज जाऊँगी।
तुम रूप अनेक धरे हँसना, मैं प्रीत गंध बिखराऊँगी॥