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हम त सुनीले सखी राम जी पहुनवाँ से / महेन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
हम त सुनीले सखी राम जी पहुनवाँ से
बिहनवें सबेरे चलि जइहें हो लाल।
नीको ना लागे सखि घरवा दुअरवा से
नीकहुँ ना लागेला भवनवाँ हो लाल।
हमनीका जनिती जो राम निरमोहिया
त हमनी सनेहियो ना जोरतीं हो लाल।
हमनी का जनि तंजे राम चलि जइहें
त हमहु किरियवा धरइतीं हो लाल।
एक मन करे सखी संगे चलि जइतीं
दूसर लागे कुलवा के लाजवा हो लाल।
एक मन करे सखी संगे चलि जइतीं
दूसर लागे कुलवा के लाजवा हो लाल।
हँसी-हँसी पूछेली जनकपुर के नारी से
जोरलो सनेहिया जनी तूड़िहऽ हो लाल।
जो तुहूँ जइहऽ राम जी अवध नगरिया तऽ
हमनी के संगे लेले चलिहऽ हो लाल।
दूलहा के देखि मोरा जियरा लोभइले
से देखहुँ के होइहें सपनवाँ हो लाल।
निरखे महेन्द्र मोहे सभके परनवाँ से
सनेहिया लगा के दागा कइलें हो लाल।