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हम दरिया का बहता पानी / कुमार शिव
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हम दरिया का बहता पानी
जहाँ जहाँ से गुज़र गए हम
नहीं वहाँ वापस लौटेंगे ।
कई बार देखा
ललचाई नज़रों से
तट के फूलों ने
बहुत झुलाया
तन्वंगी पुरवा की
बाँहों के झूलों ने
हमसे मोह बड़ी नादानी
जिन आँखों से बिखर गए हम
नहीं वहाँ वापस लौटेंगे।
चाहो तो रखना
हमको अपनी घाटी से
गहरे मन में
साँझ ढले हम ही
महकेंगे नीलकमल बनकर
चिन्तन में
हम ज़िद्दी हैं, हम अभिमानी
जिन अधरों से उतर गए हम
नहीं वहाँ वापस लौटेगे ।