भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम दहर के इस वीराने में / मुईन अहसन जज़्बी
Kavita Kosh से
हम दहर के इस वीराने में जो कुछ भी नज़ारा करते हैं|
अश्कों की ज़बां में कहते हैं आहों से इशारा करते हैं|
[दहर=सन्सार]
ऐ मौज-ए-बला, उनको भी ज़रा दो-चार थपेड़े हल्के से,
कुछ लोग अभी तक साहिल से तूफ़ां का नज़ारा करते हैं|
[मौज=लहर; साहिल=नदी का किनारा]
क्या जानिये कब ये पाप कटे क्या जानिये वो दिन कब आये,
जिस दिन के लिये इस दुनिया में क्या कुछ न गवारा करते हैं|
[गवारा=बर्दाश्त]
क्या तुझको पता क्या तुझको ख़बर दिन रात ख़यालों में अपने,
ऐ काकुल-ए-गेती हम तुझको दिन-रात सँवारा करते हैं|
[काकुल=हैर प्लैत; गेती=वोर्ल्द]