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हम दादाजी के चमचे हैं / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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धोती हैं, कुरता, गमछे हैं,
हम दादाजी के चमचे हैं।

जब छड़ी कहीं गुम जाती है,
वे छड़ी-छड़ी चिल्लाते हैं।
हम ढूँढ-ढाँढ कर फौरन ही
जा उनके हाथ थमाते हैं,
वह बचपन से ही सबके हैं,
हम सब छुटपन से उनके हैं। हम...!

ऐनक रखकर के इधर उधर,
वे भूल हमेशा जाते हैं।
जब बहुत देर तक न मिलती,
तो हम सब पर झल्लाते हैं।
हम अगर नहीं सुन पाए तो,
गुस्से में हम पर बमके हैं। हम...!

आदेश हमें जब वे देते,
हम हुकुम बजा कर लाते हैं।
वे भी तो हमको चॉकलेट,
बिस्कुट अक्सर दिलवाते हैं।
मस्ती में पीठ हमारी पर,
वे धौल जमाते जमके हैं। हम...!

वे पार कर चुके हैं अस्सी,
चेहरा अब भी पर मुस्काता।
बोली भी ऐसी है प्यारी,
जैसे भौंरा गाना गाता।
जब उम्र पूँछते हैं उनसे,
कहते सोलह से कम के हैं। हम...!