भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम दोनों में आँखें कोई कोई गीली नहीं करता / मुनव्वर राना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम दोनों में आँखें कोई गीली नहीं करता
ग़म वो नहीं करता है तो मैं भी नहीं करता

मौक़ा तो कई बार मिला है मुझे लेकिन
मैं उससे मुलाक़ात में जल्दी नहीं करता

वो मुझसे बिछड़ते हुए रोया नहीं वरना
दो चार बरस और मैं शादी नहीं करता

वो मुझसे बिछड़ने को भी तैयार नहीं है
लेकिन वो बुज़ुर्गों को ख़फ़ा<ref>नाराज़</ref>भी नहीं करता
 
ख़ुश रहता है वो अपनी ग़रीबी में हमेशा
‘राना’ कभी शाहों की ग़ुलामी <ref>दासता</ref>नहीं करता

शब्दार्थ
<references/>