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हम धरा पर राशेनी की नींव डालेंगे ज़रा / उर्मिल सत्यभूषण

हम धरा पर राशेनी की नींव डालेंगे ज़रा
प्यार की किरणों से उजले स्वप्न पालेंगे ज़रा

खो गई इन्सानियत संशय की दलदल में तो क्या
बांह दे विश्वास की उसको निकालेंगे ज़रा

लायेंगे संजीवनी अमृत कलश में ढाल कर
दुखती रग पर प्यार की जलधार डालेंगे ज़रा

ज्ञान और विज्ञान के चश्में लगाकर हम सभी
सागरों को, आसमानों को खंगालेंगे ज़रा

हम कबूतर अमन के हर ओर उड़ते जायेंगे
शान्ति के झंडे उठाकर युद्ध टालेंगे ज़रा

हम हैं उर्मिल आस किरणें प्राण नव युग के
अपने कंधों पर धरोहर को संभालेंगे ज़रा।