भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम धरा पर राशेनी की नींव डालेंगे ज़रा / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
हम धरा पर राशेनी की नींव डालेंगे ज़रा
प्यार की किरणों से उजले स्वप्न पालेंगे ज़रा
खो गई इन्सानियत संशय की दलदल में तो क्या
बांह दे विश्वास की उसको निकालेंगे ज़रा
लायेंगे संजीवनी अमृत कलश में ढाल कर
दुखती रग पर प्यार की जलधार डालेंगे ज़रा
ज्ञान और विज्ञान के चश्में लगाकर हम सभी
सागरों को, आसमानों को खंगालेंगे ज़रा
हम कबूतर अमन के हर ओर उड़ते जायेंगे
शान्ति के झंडे उठाकर युद्ध टालेंगे ज़रा
हम हैं उर्मिल आस किरणें प्राण नव युग के
अपने कंधों पर धरोहर को संभालेंगे ज़रा।