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हम नहिं आजु रहब एहि आंगन / मैथिली
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♦ रचनाकार: विद्यापति
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हम नहिं आजु रहब एहि आँगन जौँ बुढ़ होएता जमाय,
एक तो बैरी भेल बिध विधाता, दोसर धिया केर बाप,
तेसर बैरी भेल नारद ब्रह्मण, जे बुढ़ आनला जमाय.
धोती लोटा पोथी पतरा, सेहो सब देवनी छिनाय,
जौँ किछु बजता नारद बाभन, दाढ़ी धय घिसीयाब.
अरिपन निपलन्ही पुरहर फोरलन्ही, फेकलन्ही बहुमुख दीप,
धिया लय मनाइनि मंदिर पैसली, केयो जुनि गायब गीत.
भनहिं विद्यापति - सुनू हे मनाइनि, इहो थिका त्रिभुवन नाथ,
शुभ शुभ कय गौरी विवाह, इहो वर लिखल ललाट .