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हम नहीं तो काहे के तुम शाह जी / कैलाश मनहर
Kavita Kosh से
हम नहीं तो काहे के तुम, शाह जी !
राज कर लो भींतड़ों पर
हर तरफ़ ड्योण्डी पिटा दो
सच कहणिए सब जनों को
ज़मीं पर से ही मिटा दो
नित ग़ुलामों से सुनो — वाह वाह, जी !
हैं भले सरकार ! — यह जैकार
बुलवाओ ख़ुशी से
बेच सारा मुल्क मस्ती में इसे
खाओ ख़ुशी से
मत सुनो मरते ग़रीबों की तनिक भी आह, जी !
हैं अभी ये लोग सोये
चाहे जितना लूट लो तुम
इनको आपस में लड़ाकर
चाम इनकी च्यूँट लो तुम
जग गई जिस दिन ये जनता तो तुम्हें फिर
भागने की भी नहीं मिल पाएगी कुछ राह, जी !