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हम नहीं हुए है अभी ये / निशान्त
Kavita Kosh से
दूर-दराज के गावों में
निकला था सरकारी काम से
सुबह बड़े जल्दी
कच्चे- पक्के रास्तों पर
बदहाल ही सही
सक्रिय था खूब जन जीवन
कोई जोत रहा था खेत
ट्रैक्टर से
कोई ऊँट से
रात को लौटे लेट तो
वे भी लौट रहे थे खेंतों से
कोई लादे था लकड़ियाँ घास
गाडे में
कोई सिर पर
रास्ता रोका हमारा कई बार
भेड़ बकरियों के रेवड़ ने
दूसरे दिन भी जाना पड़ा
हडिडयों में थी थकान पहले दिन की
पसरे पड़े देखा घरों के आगे दो चार को
तो ललचाया जी
आराम के लिए
लेकिन थोड़ा निकले आगे
एक खेत में देखी एक छतरी; समाधिद्ध
तो आया ध्यान
अरे! दिन रात तो आराम
फरमाया करतें हैं ये
और हम नहीं हुए हैं अभी ये