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हम ने कब तुझ को चाहा नहीं है / अनु जसरोटिया
Kavita Kosh से
हम ने कब तुझ को चाहा नहीं है
हम ने कब तुझ को पूजा नहीं है
जिस को देखें सभी राह चलते
ज़िंदगी वो तमाशा नहीं है
एक ऐसा सफ़र भी है जिस पर
जो गया फिर वो लौटा नहीं है
ख्वाब पाला नहीं कोई हम ने
दिल में कोई तमन्ना नहीं है
कुछ न चाहूँ यही सोचती हूँ
मेरा चाहा तो होता नहीं है
तुझ से रक्खूँ कोई राबिता मैं
मेरा क़द इतना ऊँचा नहीं है
रोक लूँ एक दिन तेरा रस्ता
मैं ने कब ऐसा सोचा नहीं है
अब इधर से नहीं क्यूँ गुज़रते
क्या ये रस्ता, वो रस्ता नहीं है
इस पे तारीकियों के हैं साये
ये उजाला, उजाला नहीं है