भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम ने कब तुझ को चाहा नहीं है / अनु जसरोटिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम ने कब तुझ को चाहा नहीं है
हम ने कब तुझ को पूजा नहीं है

जिस को देखें सभी राह चलते
ज़िंदगी वो तमाशा नहीं है

एक ऐसा सफ़र भी है जिस पर
जो गया फिर वो लौटा नहीं है

ख्वाब पाला नहीं कोई हम ने
दिल में कोई तमन्ना नहीं है

कुछ न चाहूँ यही सोचती हूँ
मेरा चाहा तो होता नहीं है

तुझ से रक्खूँ कोई राबिता मैं
मेरा क़द इतना ऊँचा नहीं है

रोक लूँ एक दिन तेरा रस्ता
मैं ने कब ऐसा सोचा नहीं है

अब इधर से नहीं क्यूँ गुज़रते
क्या ये रस्ता, वो रस्ता नहीं है

इस पे तारीकियों के हैं साये
ये उजाला, उजाला नहीं है