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हम ने गाए ज़िन्दगी तेरे लिए गाने बहुत / रमेश तन्हा

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हम ने गाए ज़िन्दगी तेरे लिए गाने बहुत
इम्तिहां लेती रही है तू भी मन माने बहुत।

आस्तीनों में छुपाकर नीयते-बद की छुरी
छेड़ते हैं लोग अपने पन के अफ़साने बहुत।

दिल, कि गहवारा कभी था कायनाते-शौक़ का
चीखते हैं इस में अब हसरत के वीराने बहुत।

जां-गुसल कितनी मुसाफ़त सोच जे सहरा की थी
वहम के सदहा सराब और रस्ते अंजाने बहुत।

पांव के नीचे ज़मीं थी आसमां पर मेरा सर
मेरा 'मैं' क्यों फैलता जाता था, क्या जाने, बहुत।

मैं वहां जाता, भेज तो किस हमसरी के ज़ोम में,
खुद से भी ना आश्ना 'मैं' लोग बेगाने बहुत।

रौशनी अफशां छिड़कती क्या दरो-दीवार पर
तीरगी में भी पनपते थे निहां-खाने बहुत।

जो खुद अपना ही लहू पीकर हमेशा खुश हुए
ज़िन्दगी ने ऐसे भी देखे हैं दीवाने बहुत।

ज़िन्दगी की नामुरादी के भी नौहे ग़म ही गाए
ग़म ही छेड़े है महब्बत के भी अफ़साने बहुत।

सब तक़ाज़े मांद पड़ जाते हैं आगे शौक़ के
शमअ रौशन हो तो मिट जाने को परवाने बहुत।

पत्थरों के देस में 'तन्हा' न क्यों घबराये दिल
सिर्फ इक चेहरा है और हैं आइना-खाने बहुत।