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हम ने तो सब के वास्ते / मोहम्मद इरशाद
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हमने तो सब के वास्ते दिल से ही दुआ की
अब देखते हैं आगे क्या म़र्जी है ख़ुदा की
हमसे वफा की आपने उम्मीद क्यूँ न की
जो बेवफा था उससे ही उम्मीदे-वफा की
अपनों मे भी वो रहता है जैसे है अज़नबी
उसको नहीं ज़रूरत अब कोई सज़ा की
ख़ूने ज़िगर मिला के जलाते अगर चराग़
उसको बुझादे क्या थी औकात हवा की
हर शख़्स की क्यूँ उँगली उठी है तेरी तरफ
मुझको बता क्या तूने कोई ऐसी ख़ता की
जिस हाल में वा रखेगा उस हाल में हूँ ख़ुश
मुझको नहीं तलब किसी भी मालोमात की
सोचो तो गुनहगार है हर आदमी मगर
करता कुबुल कौन है कि मैंने ख़ता की
‘इरशाद’ तुम से मिलके ही अच्छा मैं हो गया
मुझको नहीं ज़रूरत अब कोई दवा की