भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम न्यूट्रल हैं ख़ारजा हिकमत के बाब में / सय्यद ज़मीर जाफ़री
Kavita Kosh से
हम न्यूट्रल हैं ख़ारजा हिकमत के बाब में
नय हाथ बाग पर हैं न पा हैं रिकाब में
यूँ काँपता है शैख़ ख़याल-ए-षराब से
जैसे कभी ये डूब गया था शराब में
इस बात पर भी हम ने कई बाब लिख दिए
जो बात रह गई थी ख़ुदा की किताब में
तन्क़ीद-ए-जाम-ओ-मय तो बहुत हो चुकी हुज़ूर
अब क्या ख़याल है ग़म-ए-हस्ती के बाब में
रिंदों की बे-हस्ती भी ख़बर-दार चीज़ थी
अक्सर झगड़ पड़े हैं हिसाब-ओ-किताब में
लुत्फ़ इस मुशाइरे में मिला कॉकटेल का
जमुना का रस भी आन मिला है चनाब में