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हम न होंगे प्यास का इक सिलसिला रह जायेगा / उर्मिल सत्यभूषण
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हम न होंगे प्यास का इक सिलसिला रह जायेगा
पीने वालों के बिना भी मैकदा रह जायेगा
सामने इसके कहें कुछ आ कि अपने बाद भी
वक्त की दीवार पर यह आईना रह जायेगा।
एक दिन मर जायेगा बुलबुल तड़प कर कै़द में
पर हवा में गीत उसका गूंजता रह जायेगा
वो तो बरसायेंगे खुलकर तुझ पे बारिश जौर की
तू वफ़ा के हर सिले को सेाचता रह जायेगा
ख़्वाहिशों के जंगलों में जंगली इन्सान का
क्या भला इन्सानियत से वास्ता रहा जायेगा
एक दिन लुट जायेगा हर आरजू का काफिला
ख़्वाहिशों का भार ये दिल पर धरा रह जायेगा
जंग जब इक कहर बन टूटेगा इस संसार पर
‘‘आस्माँ की सम्त इन्सां देखता रह जायेगा’’
वक़्त की इस रेत पर उर्मिल लिखें इतिहास हम
बाद अपने नक्शे पा कर काफ़िला रह जायेगा।