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हम परतच्छ मैं प्रमान अनुमाने नाम्हि / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’
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हम परतच्छ मैं प्रमान अनुमाने नाम्हि,
तुम भ्रम-भौंर मैं भलैं हीं बहिबौ करौ ।
कहै रतनाकर गुबिंद-ध्यान धारैं हम,
तुम मनमानौ ससा-सिंग गहिबौ करौ ॥
देखति सो मानति हैं सूधो न्याव जानति हैं,
ऊधो ! तुम देखि हूँ अदेख रहिबौ करौ ।
लखि ब्रज-भूप अलख अरूप ब्रह्म,
हम न कहैंगी तुम लाख कहिबौ करौ ॥44॥