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हम परिणाम निराशा / शम्भुनाथ मिश्र

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कहलनि गुरुवर- अछि चित्त हमर बड़ उचटि गेल
छथि पाँच पुत्र सब पढ़ल-लिखल,
हमरा लय किन्तु न काजक क्यौ,
अछि एकहिटा बेटी हमरा
से फोन फानसँ हाल-चाल अछि बूझि लैत,
धरि बेटाकेँ नहि छनि पलखति
फोनोसँ पुछता हाल हमर।
क्यौ शिक्षक छथि क्यौ अभियन्ता,
क्यौ प्रोफेसर क्यौ डाक्टर छथि,
जे जन छथि सबसँ छोट
बैंक मैनेजर पद शोभित कयने,
धरि सब हमरालय एक रंग
मिसियो भरि नहि उन्नैस बीस,
हम उद्यम संयमहिक बलसँ
सब पुत्र लोकनिकेँ
पढ़ा-लिखा कऽ
स्वयम् बनौलहुँ योग्य,
राष्ट्र निर्माणेकेँ लय लक्ष्य
बनौलहुँ जीवनकेँ आधार
कयल आधारेकेँ मजगूत
मुदा सब भेल बालुकेर भीत
हृदयमे उठय प्रबल उत्ताप
होइछ सन्ताप अपन जीवनपर जे,
ककरालय नहि की की कयलहुँ?
धरि बेर काल सब छिटकि गेल,
सब बिसरि गेल,
अछि भोगवाद दिवड़ाक भीड़,
सौंसे समाजकेँ खुक्ख केने
सर्वत्र व्याप्त भय पसरि रहल,
नाशक पहरा छै नाचि रहल,
कवि विद्यापति सत्ये कहने छथि
‘हम परिणाम निराशा’ अछि से
बेर हमर ओ आबि गेल
बजलहुँ हम गुरुवर रहल जाओ
हमरहि डेरापर रहल जाओ
आशीष पाबि हम रहब धन्य
बजला गुरुवर नहि अछि सम्भव
हम रहब लोक की कहत?
ग्लानिसँ मरि जायब हम जिबितेमे
थिक से न उचित
जीवन भरि बटलहुँ संस्कार
पौलहुँ सबतरि सम्मान बहुत
तेँ चित्त भेल बड़ तृप्त अहँक एहि वचनेसँ,
अछि सतत हमर आशीष
अहाँ पहुँची सर्वोच्च शिखरपर,
जकरा देखि होइ हम धन्य,
शिक्षकक जीवनकेर अनमोल धरोहर अहीँ थिकहुँ
से कहइत टप-टप खसल नोर
गुरुवरक वेदना अनुभव-कय
हमरा नहि आगू बाजि भेल,
हम बकर-बकर तकिते रहलहुँ
गुरुवरक भरल ओ साश्रु नयन