हम पर जफ़ा से तर्के-वफ़ा का गुमाँ नहीं / ग़ालिब
हम पर जफ़ा से तर्के -वफ़ा<ref>प्रणय-विच्छेद</ref>का गुमाँ <ref>भ्रम</ref>नहीं
इक छेड़ है, वगर्ना मुराद<ref>अभीष्ट</ref> इम्तहाँ<ref>परीक्षा</ref> नहीं
किस मुँह से शुक्र कीजिए इस लुत्फ़-ए-ख़ास का
पुरसिश<ref>सत्कार</ref> है और पा-ए-सुख़न<ref>कहने की हिम्मत</ref> दरमियाँ नहीं
हमको सितम अज़ीज़ सितमगर को हम अज़ीज़
ना-मेहरबाँ नहीं है, अगर मेहरबाँ नहीं
बोसा नहीं न दीजिए दुश्नाम ही सही
आख़िर ज़बाँ तो रखते हो तुम,गर दहाँ नहीं
हरचन्द जाँ-गुदाज़ी<ref>जानलेवा</ref>-ए-क़हर-ओ-इताब<ref>क्रोध व आतंक</ref> है
हरचन्द पुश्त गर्मी<ref>सहारा</ref>-ए-ताब-ओ-तवाँ <ref>सहनशक्ति</ref>नहीं
जाँ मुतरिब-ए-तराना<ref>गायक</ref>-ए-‘हलमिन मज़ीद’<ref>पवित्र क़ुरआन का आह्वान</ref> है
लब, पर्दा संज-ए-ज़मज़म-ए-अलअमाँ<ref>भयमुक्त बुदबुदाहट</ref> नहीं
ख़ंजर से चीर सीना,अगर दिल न हो दुनीम<ref>दो टूक</ref>
दिल में छुरी चुभो, मिज़्गाँ<ref>पलकें</ref> गर ख़ूँचकाँ<ref>रक्त रंजित</ref> नहीं
है नंगे-सीना दिल अगर आतिशकदा<ref>आँचघर</ref>न हो
है आरे- दिल<ref>शर्म लज्जा</ref> नफ़स<ref>अस्तित्व,श्वास</ref> अगर आज़रफ़िशाँ<ref>अग्निवर्षक</ref>नहीं
नुक़्साँ <ref>हानि</ref>नहीं, जुनूँ में बला से हो घर ख़राब
सौ ग़ज़ ज़मीं के बदले बयाबाँ गराँ <ref>बोझ</ref>नहीं
कहते हो क्या लिखा है तेरे सर नविश्त<ref>भाग्य</ref> में
गोया जबीं<ref>माथे</ref> पे सिज्दा-ए-बुत<ref>आस्तिकता</ref> का निशाँ नहीं
पाता हूँ उससे दाद कुछ अपने क़लाम की
रूहुल-क़ुदूस<ref>ज़िब्रील नामक देवता</ref> अगर्चे मेरा हमज़बाँ<ref>मित्रवर</ref> नहीं
जाँ है बहा-ए-बोसा <ref>चुम्बन जैसा</ref>वले<ref>लेकिन</ref> क्यूँ कहे अभी
‘ग़ालिब’ को जानता है कि वो नीमजाँ<ref>अधमरा</ref> नहीं