भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम प्याले थे प्रीत सुधा रस भरे / कुमार अनिल
Kavita Kosh से
हम प्याले थे प्रीत सुधा रस भरे,
क्यों जाने ज़हर का जाम हुए ।
आगाज़ में उषा बन के उगे,
अंजाम में ढलती शाम हुए ।
एक प्यार के सौदे की बात ही क्या,
हर काम में हम नाकाम हुए ।
हमें नाम भी अपना न याद रहा,
इतना जग में बदनाम हुए ।