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हम प्रेम का हाथे पकड़ाई / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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हम प्रेम का हाथे पकड़ाई
ई आस लगा बइठल बानीं।
बा देर भइल, अपराध बहुत-
कइला के हम दोसी बानीं।
जब विधि विधान का बंधन में
बान्हे खातिर ऊ आवेले।
हम भाग पराइले हरदम
हमरा के पकड़ ना पावेले।
एकरा खातिर जे दंड मिली
झेले खातिर तत्पर बानीं।
हम प्रेम का हाथे पकड़ाईं
ई आस लगा बइठल बानीं।
सब लोग करे निंदा हमार
ऊ निंदा तनिको झूठ ना बा।
हम सबसे नीचे रहब सदा
निंदा सब सिर माथे पर बा।
अब बेरा बीत गइल, मेला-
बेंचा-कीनी के उसर गइल।
जे आइल रहे बोलावे ऊ
खिंसिया के हमसे, लौट गइल।
हम प्रेम का हाथे बिक जाईं
हम प्रेम का हाथे पकड़ाईं।
ई आस लगा बइठल बानीं
ना पता कि कब ऊ छन आई।