हम बसंत से प्यार करऽ ही / सतीश मिश्रा
चाँदी के चकमक थरिआ में, चन्नन नीअन चान धरऽ ही
अच्छत अइसन बिछा तरेगन, अगुआनी हर बार करऽ ही
हम बसन्त से प्यार करऽ ही।
कोने-कोने बिछा गलइचा
छींट निअन जे फूल खिला दे
बिन काँटा आउ काँटा वाला
आम-बइर के हाथ मिला दे
जेकर कोइली पंचम टेरे, सेकर हम सत्कार करऽ ही
अच्छत अइसन बिछा तरेगन, अगुआनी हर बार करऽ ही
हम बसन्त से प्यार करऽ ही।
जब देखऽ ही, एक बाध में
सरसों आउ खेसारी फूलल
तब सोचऽ ही पौधा सब तो
ऊँच-नीच के अन्तर भूलल
एही धार बहेला हमहूँ मन-गंगा अजवार करऽ ही
अच्छत अइसन बिछा तरेगन, अगुआनी हर बार करऽ ही
हम बसन्त से प्यार करऽ ही।
साले-साल दुआरी लग के
एक्के बात बसंत कहऽ हे-
भेदभाव बस अंत कर, बस-
अंत करऽ, रितुकंत चहऽ हे
जे सिखवे हिलमिल के रहना, सेकरा बारम्बार बरऽ ही
अच्छत अइसन बिछा तरेगन, अगुआनी हर बार करऽ ही
हम बसन्त से प्यार करऽ ही।