भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम बहेंगे / चंद्र रेखा ढडवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हम बहेंगे

हम नहीं लड़ेंगे
पाप के विरुद्ध पुण्य की विजय
असत्य के विरुद्ध सत्य की विजय
साधने के लिए.

हम नहीं अड़ेंगे
पागल साँड-सी बिफरती भीड़ के सन्मुख
बाढ़ होती नदी के सन्मुख
सुदिशा के लिए.

हम बहेंगे
स्वप्न हो निद्राओं में
रक्त हो तुम्हारी शिराओं में
सुदीर्घ जीवट के लिए.