भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम बिंदु हैं / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम बिंदु हैं
बिंदुओं के सगे
लकीर में लगे
सबसे जुड़े
जहाँ भी गए
लकीर हो गए
लय में लीन हो गए

रचनाकाल: २३-१०-१९७०