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हम बूढ़ों को आँख दिखाकर चले गये / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
हम बूढ़ों को आँख दिखाकर चले गये
बेटे कब आये कब आकर चले गये
अब वो नये ज़माने की बातें करते
हमको गुज़रा वक़्त बताकर चले गये
बेटों ने रख लीं तस्वीरें शादी की
बचपन की तस्वीर भुलाकर चले गये
रोती माँ दरवाज़ा पकड़े खड़ी रही
पुत्र हमारे हाथ हिलाकर चले गये
बूढ़े कुत्ते करते घर की रखवाली
गुज़़रे लम्हे ख़्वाब चुराकर चले गये
खेती अधिया पर देकर आराम करो
बेटे यह फ़रमान सुनाकर चले गये
इतनी ही बस जीवन की उपलब्धि रही
चार पड़ोसी चिता जलाकर चले गये