भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम बेवफ़ा हरगिज न थे / आनंद बख़्शी
Kavita Kosh से
हम बेवफ़ा हरगिज़ न थे
पर हम वफ़ा कर ना सके
हमको मिली उसकी सजा
हम जो ख़ता कर ना सके
कितनी अकेली थी वो राहें हम जिनपर
अब तक अकेले चलते रहें
तुझसे बिछड़ के भी ओ बेखबर
तेरे ही ग़म में जलते रहें
तूने किया जो शिकवा
हम वो गिला कर ना सके
तुमने जो देखा सुना सच था मगर
इतना था सच ये किसको पता
जाने तुम्हे मैने कोई धोखा दिया
जाने तुम्हे कोई धोखा हुआ
इस प्यार में सच झूठ का
तुम फ़ैसला कर ना सके