हम बेसरो-सामां अहले-जनूं दीवानों का नंगो-नाम है क्या ।
क्यूँ हमको बुलावा आया है हम जैसों से उसको काम है क्या ।।
ले पहले गरेबां चाक किया अब करते हैं अपने हाथ क़लम
अब जल्द बता ऐ राहनुमा कुश्तों के लिए पैग़ाम है क्या ।
ग़म के हमपहलू ज्यूँ हो ख़ुशी नासेह के साथ है साक़ी भी
इस आख़िरी लम्हे में यारो तक़दीर में अपनी जाम है क्या ।
ऐ रोनेवाले छोटी-सी एक बात बता चुपके से हमें
आग़ोश में जिसकी सुब्ह न हो ऐसी भी अन्धेरी शाम है क्या ।
सर एक बला था कांधे पर सर की तो हमें तश्वीश नहीं
इंसाफ़ मगर ये कहता था मालूम तो हो इलज़ाम है क्या ।।
16 अप्रैल 1987