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हम बेसरो-सामां अहले-जनूं दीवानों का नंगो-नाम है क्या / कांतिमोहन 'सोज़'

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हम बेसरो-सामां अहले-जनूं दीवानों का नंगो-नाम है क्या ।
क्यूँ हमको बुलावा आया है हम जैसों से उसको काम है क्या ।।

ले पहले गरेबां चाक किया अब करते हैं अपने हाथ क़लम
अब जल्द बता ऐ राहनुमा कुश्तों के लिए पैग़ाम है क्या ।

ग़म के हमपहलू ज्यूँ हो ख़ुशी नासेह के साथ है साक़ी भी
इस आख़िरी लम्हे में यारो तक़दीर में अपनी जाम है क्या ।

ऐ रोनेवाले छोटी-सी एक बात बता चुपके से हमें
आग़ोश में जिसकी सुब्ह न हो ऐसी भी अन्धेरी शाम है क्या ।

सर एक बला था कांधे पर सर की तो हमें तश्वीश नहीं
इंसाफ़ मगर ये कहता था मालूम तो हो इलज़ाम है क्या ।।

16 अप्रैल 1987