हम भारतीय / बाजार में स्त्री / वीरेंद्र गोयल
चलते ट्रैफिक के बीच में
हरे सिगनल पर
करते हैं सड़क पार
वाहनचालकों को चौंकाने के लिए
अपनी बहादुरी दिखाने के लिए
जहाँ होता है निषेध
वहीं करते हैं मूत्र विसर्जन
अपनी मर्दानगी दिखाने के लिए
अपने नंगेपन को चमकाने के लिए
जहाँ होती है नो पार्किंग
वहीं करेंगे गाड़ी खड़ी
विद्रोह है एक फैशन
टूटती है रूढ़ियाँ,
मान्यताएँ सदियों पुरानी
होता है ये भी साबित
नहीं रहे हम आज्ञाकारी
देते हैं बिन माँगी सलाह
हर बीमारी का इलाज
तत्पर हर वक्त सेवा को
अच्छे-भले को बीमार न बना दें
झेलते रहते हैं सभी को
कि चलती रहे जिंदगी
जैसे चाहें हम
विघ्न ना पड़े
किसी इच्छा में
पर कहें न करने को
पड़ोसी से प्यार
इतना वक्त कहाँ
कि आसपास झाँक लें,
मैं, मेरा, मेेरे उत्तराधिकारियों का
रह ना जाए कोई आराम
इससे ज्यादा सोच नहीं
कोल्हू के बैल से ज्यादा जीवन नहीं
करो इन सब पर गर्व
लहराते रहो
अपने विद्रोह का परचम।