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हम भी तुम भी और पुराने रस्ते ढूँढे शहरों को / शक्ति बारैठ

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मैं अकेला ही चला था,
तुम्हारी और, तुम्हारा साथ लेकर
दौर गुजरे, दिन गुजरे और
हाथ छुड़ा बैठा,
तुम उस और निकले,
मैं इस और,
मालूम था वहाँ कुछ नहीं
तुम भी नहीं, सिर्फ सफ़र था
और इधर
ऊँचे दरख्तों के निचे से गुजरने वाले तंग रस्ते
नदियों के भटकाव खाते किनारे
समन्दरों में हर लहर के साथ डूबती रेत
बंद पड़े रेलों के इंजन
और उनकी छाँव में बरसों से भीगती, सूखती
और डूबती पटरियाँ,
तंगहाल शहर, उजड़ते, बनते, बिखरते गाँव,
हँसी आती है,
हाथ तुमने छुड़ाया,
भटका में
समय के पार पहुँच गया,
देखों, वहाँ, तुम्हारी दुनिया में अब कुछ भी नहीं
तुम भी नहीं,
मैं भी नहीं
और वो,
वो भी नहीं।