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हम भी पत्थर को आइना कहते / आनन्द किशोर
Kavita Kosh से
ख़ुद को पागल, या हादसा कहते
इश्क़ जब हो गया तो क्या कहते
शोख़ , कमसिन बड़े हसीन हैं वो
उनकी नादानियों को क्या कहते
हम अगर बोलते भी महफ़िल में
आप से कुछ अलग ज़रा कहते
देख लेते जो आपका चेहरा
हम भी पत्थर को आइना कहते
रूह में वो समा गये मेरी
कैसे हम फिर भी फ़ासला कहते
आप आये नहीं थे महफ़िल में
आप होते तो कुछ नया कहते
फ़ैसला हक़ में आपके होता
कम से कम आप जो हुआ कहते
ग़म नहीं, ख़ुद को पारसा वो कहें
ग़म यही , हमको बेवफ़ा कहते
दिल से 'आनन्द' आपको चाहा
ये हक़ीक़त है और क्या कहते