Last modified on 17 मार्च 2018, at 16:22

हम भी सीखें बाल सुमन से / जितेंद्र मोहन पंत

कंचन—कुसुम से कोमल कलियां जन्म हैं लेती,
मोहक मधुर मुस्कान से मानव मन हर लेती।
किसने सिखलाया कलियों को खिलना?
किससे सीखा है पुलकित पुष्पों ने हंसना?
इन्हीं बाल सुमन अधखिले कुसुम से जो जग प्यारे,
हंस खिलना सिखलाते जग को नयन के तारे।

चींटी—पक्षी रहते आपस में मिल जुलकर,
भेदभाव को त्याग सदा सबको अपनाकर।
बच्चों में ही तो यह गुण है मिल—जुल रहना,
शब्दकोष में शब्द न 'भेदभाव' का होना।

आओ! हम भी मिल जुलकर मुस्कायेंगे जीवन भर,
बाल सुमन की भांति खिलें सब दु:ख बिसारकर।
अश्पृश्यता भेदभाव को नहीं अपनायें।
सदगुण सब अपनाकर जग को स्वर्ग बनायें।।