हम मज़दूर-किसान / रामकुमार कृषक
हम मज़दूर-किसान... हम मज़दूर-किसान...
हम मज़दूर-किसान रे भैया हम मज़दूर-किसान...
हम जागे हैं अब जागेगा असली हिन्दुस्तान
हम मज़दूर किसान... हम मज़दूर किसान...
अपनी सुबह सुर्ख़रू होगी अन्धेरा भागेगा
हर झुग्गी अँगड़ाई लेगी हर छप्पर जागेगा
शोषण के महलों पर मेहनतकश गोली दागेगा
शैतानों से बदला लेगी धरती लहू-लुहान...
हम मज़दूर किसान... हम मज़दूर किसान...
मिल-मज़दूर और हलवाहे मिलकर संग चलेंगे
खोज-खोज डँसनेवाले साँपों के फन कुचलेंगे
ख़ुशहाली को नई ज़िन्दगी देने फिर मचलेंगे
मुश्किल से टकराकर होगी हर मुश्किल आसान...
हम मज़दूर किसान... हम मज़दूर किसान...
हरी-भरी अपनी धरती पर अपना अम्बर होगा
नदियों की लहरों-सा जीवन कितना सुन्दर होगा
सबसे ऊँचा सबसे ऊपर मेहनत का सिर होगा
छीन नहीं पाएगा कोई बच्चों कि मुस्कान...
हम मज़दूर किसान... हम मज़दूर किसान...
21.07.1978