भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम मात्र बोतल हैं / जय जीऊत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम तुम्हारे हाथ में मात्र बोतल बने रहे
हां बोतल !
किसी घर के अंजाने कोने में फेंकी गयी खाली बोतल
हर आतए-जाते पैर से ठुकरायी जाने वाली निकम्मी बोतल
दोबारा उपयोग में न आ सकने वाली फालतू बोतल ।
तुमने हमें जब चाहा, भरा
जितना चाहा, खाली किया
उतना नहीं जितना हमने चाहा
बल्कि जितना तुमने चाहा
तुम्हारे गुट के लोगों ने चाहा ।
अब हम खाली हैं
किसी हार खाए जुआरी की जेबों की तरह नितांत खाली
अब हम चाहें भी तो
किसी तरह भर नहीं पाएंगे
क्योंकि हमारा जर्जर अस्तित्व
छोटे-बड़े छेदों से विकलांग है ।
तुमने हमें सदा
भरा-पूरा रखने का सब्ज़ बाग दिखाया था
पर यह हमारे जीवन की त्रासदी है
या तुम्हारी संकीर्णता का परिचय
कि अब हम रिस रहे हैं ।
टपक रहे हैं
बूंद-बूंद
और तुम हमारी टपकन को देखकर भी
अडिग हो अविचल हो
ठीक किसी मील के पत्थर की तरह ।
हम अब कभी न भर सकेंगे
इस कल्पना से हमारा खालीपन
घोर वितृष्णा से भर-भर जाता है ।