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हम यहाँ फ़ुटपाथ पर हैं और वह बैठी वहाँ / रामकुमार कृषक
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हम यहाँ फ़ुटपाथ पर हैं और वह बैठी वहाँ,
मान लो चल ही गई संसद तो पहुँचेगी कहाँ ।
हैं जहाँ पर हम वहाँ पर तो वो आने से रही,
ख़्वाब में उसके हज़ारों और भी होंगे जहाँ ।
हर तरफ सूखा ही सूखा दूर तक सब्ज़ा नहीं,
बाग़ सब उजड़े हुए आबाद सारे बाग़बाँ ।
याद आते हैं वो वादे जो किए हमसे गए,
अब तो हम हैं और हम जैसे हज़ारों बेज़ुबाँ ।
पास अपने ताकने के दूसरा चारा नहीं,
हैं सभी उनकी उड़ानें और सातों आसमाँ ।
रोज़ प्यासों के लिए जारी है गंगा - आरती,
सब्र कीजे कल उतर आएगी नीचे कहकशाँ ।