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हम यहां / कौशल किशोर

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हवा के थपेड़े
इन बन्द दरवाजों से टकराकर
लौट गए होंगे

मेरी अनुपस्थिति
एक बड़े ताले की तरह
कुण्डी के सहारे लटक रही है

ताले से बन्द
इस छोटी-सी दुनिया में
हर जगह मौजूद है
मेरा होना

यहाँ हम नहीं होते
फिर भी हम होते हैं
हमारी हरकतों के निशान
दोस्तों की हंसी
उनके कहकहे
कई-कई आवाजें
करती है वास

और सबसे अधिक
इधर-उधर बिखरी किताबों की दुनिया
विचारों की खिलखिलाहट
जिसकी आंच में
दिनभर के तनाव का
वाष्पीकरण होता रहता है
निरन्तर!