भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम रउदा हती: हम छांव हती / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम रउदा हती
हम छांव हती
निम्मन आदमी के
गाँव हती
नदी-पोखर मंे बहे
ऊ नाव हती
निम्मन काम करे
उ हाथ हती
जे नेकी के राह पर चले
ऊ पाँव हती।
अन्हरिया के अन्हार मसान में
इजोरिया के चान के
आसो हती
भूलल-भटकल राही के
बन्हिया राह देखावे वाला
राहो हती
झूठ-छल के लेल
जे झुक न सके
चंद रुपइया खातिर
बिक न सके
हम अइसन अदमी के
मानो हती
हम रामो हती
घनश्यामो हती
राधा-सीता के
जानो हती।